Sunday, November 20, 2011

मेरे मन में दृढ विश्वास है,
कि देश में फिर से उबाल आएगा,
जन - जन के ह्रदय में ये विचार आएगा,
कि आज़ादी हमारे शहीदों के रंग से रंगी है,
और देश कि माटी हमारे खून से महंगी है,
अपने कर्तव्य का तब हमें एहसास आएगा
देखना ! इस देश में फिर से उबाल आएगा



Tuesday, October 25, 2011

Losses

He was 28 and left us. Son of my mother's sister.

It is really hard to believe he is not around the countryside I often visited while I was a kid. He left all of us saddened and gave no signs of coming back. It is only being philosophical that compensates now for the pain of not seeing him again. Contemplation gives me a temporary moment of wisdom.

I read in my childhood There are some partings from where no body returns. Truly written.
This year has been the year of witnessing departures.
So many departures.
Departures breaking brain and heart.

Indeed, life gives its signatures of unfairness.

Saturday, April 3, 2010

कुछ शेष...... अवशेष

तू नहीं है सामने, तेरी तस्वीर है ,
यादों की बुनी, एक पुरानी ज़ंजीर है।,
चमकती हैं तेरी झलकियाँ कभी ,
नज़रों के सामने,
फेर के मुँह उल्टा,चलता हूँ मैं
शान से ,तान के ,
जान के आँखों का छलावा है ,
भ्रम का दिखावा है ।

दूर ठहर के पछताता हूँ,
जरा-जरा घबराता हूँ ।
वापस मुड़ता हूँ पीछे ,
यादों और हकीकत में,
धुंध दिखता है चारो तरफ
सिवाय तेरे चेहरे के,
सवाल उठते हैं कई,
अतीत के पन्नो से।

पर तेरे चेहरे का भाव अलग सा है,
विचारहीन कुछ सुखा सा है।
खामोश सिसकियों के साथ ,
जैसे तेरा समझौता सा है ।
तू नहीं है वो शायद,
जिसे अक्सर ढूँढता हूँ,
बीते हुए कल में,
जिसे मैं टटोलता हूँ।

यादों के गहरे पानी के नीचे,
वक़्त खींचता है तेज़ी से पीछे,
और सपनो के उड़ान में फिर देर कहाँ लगती है,
हो कहीं भी, तू गैर कहाँ लगती है?
यादों की तस्वीरों को पलट जरा,
क्या उनमे मेरा कोई झरोखा है?
आज़ाद पंछी है तू आज भी ,
या मेरी नज़र का फिर से कोई धोखा है ?



आज़ाद पंछी है तू आज भी ,
या मेरी नज़र का फिर से कोई धोखा है ?