Saturday, April 3, 2010

कुछ शेष...... अवशेष

तू नहीं है सामने, तेरी तस्वीर है ,
यादों की बुनी, एक पुरानी ज़ंजीर है।,
चमकती हैं तेरी झलकियाँ कभी ,
नज़रों के सामने,
फेर के मुँह उल्टा,चलता हूँ मैं
शान से ,तान के ,
जान के आँखों का छलावा है ,
भ्रम का दिखावा है ।

दूर ठहर के पछताता हूँ,
जरा-जरा घबराता हूँ ।
वापस मुड़ता हूँ पीछे ,
यादों और हकीकत में,
धुंध दिखता है चारो तरफ
सिवाय तेरे चेहरे के,
सवाल उठते हैं कई,
अतीत के पन्नो से।

पर तेरे चेहरे का भाव अलग सा है,
विचारहीन कुछ सुखा सा है।
खामोश सिसकियों के साथ ,
जैसे तेरा समझौता सा है ।
तू नहीं है वो शायद,
जिसे अक्सर ढूँढता हूँ,
बीते हुए कल में,
जिसे मैं टटोलता हूँ।

यादों के गहरे पानी के नीचे,
वक़्त खींचता है तेज़ी से पीछे,
और सपनो के उड़ान में फिर देर कहाँ लगती है,
हो कहीं भी, तू गैर कहाँ लगती है?
यादों की तस्वीरों को पलट जरा,
क्या उनमे मेरा कोई झरोखा है?
आज़ाद पंछी है तू आज भी ,
या मेरी नज़र का फिर से कोई धोखा है ?



आज़ाद पंछी है तू आज भी ,
या मेरी नज़र का फिर से कोई धोखा है ?